नवरात्री सातवां दिन – माता कालरात्रि – कथा, पूजा विधि एवं मूल मंत्र – Mata Kaalratri

Posted by hindimanthan | Sep 25, 2022
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नवरात्री सप्तमी- माँ कालरात्रि

आइये जानते हैं माँ कालरात्रि के बारे में। माँ अपने महा विनाशक गुणों से शत्रुओ का संहार करने के कारण कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। माँ सांसारिक स्वरूप में कालिका का अवतार धारण करती हैं, क्योंकि वे काले रंग की और बड़े बालों को फैलाकर चार भुजाओं वाली दुर्गा के रूप में अवतरित हुई हैं। अपने इस वेश में माँ अर्द्धनारीश्वर शिव की ताण्डव मुद्रा में नजर आती हैं। माँ के नेत्रों से अग्नि वर्षा होती है। माँ अपने एक हाथ से शत्रुओं की गर्दन व दूसरे हाथ में खड़क तलवार धारण किये हुए कालरात्रि अपने विकराल रूप में नजर आती हैं। माता कालरात्रि का वाहन गधर्व यानी गधा है जो सभी जन्तुओं में सबसे अधिक मेहनती और निर्भय होकर अधिष्ठात्री कालरात्रि को लेकर इस संसार में विचरण कर रहा है। माँ को भयंकरी कृष्णा और काली माता का स्वरूप भी जगत में प्रदान किया गया है। मकर व कुंभ राशि के लोगो को माँ कालरात्रि की पूजा करनी चाहिए। जो भक्त सच्चे मन से माँ की पूजा करते हैं, माँ उनकी हमेशा रक्षा करती है और उनपर अपनी छत्रछाया बनाये रखती हैं।

माँ कालरात्रि की कहानी:
आइये जानते हैं माँ कालरात्रि की मार्मिक कहानी के बारे में। माँ के नौ रूप है और हर रूप का अपना एक अलग ही रहस्य है। ऐसे ही माँ का सप्त रूप का भी एक रहस्य है। एक बार रक्तबीज भगवान शिव की तपस्या कर रहा था। उसके घोर तप से शिव जी प्रसन्न हो कर प्रकट होते हैं और वरदान मांगने को बोलते हैं तब रक्तबीज भगवान् शिव से यह वरदान मांगता है की उसके रक्त की बूँद जहां जहां गिरे वहां-वहां एक नया रक्तबीज बन कर तैयार हो जाये।

अब जब रक्तबीज का युद्ध देवताओं से होता तो देवता जब उस पर प्रहार करते तो उसके रक्त की बूंदो से कई रक्तबीज तैयार हो जाते। जिससे कोई भी उसको पराजित नहीं कर पाता। इसी कारण रक्तबीज का अत्याचार बढ़ता ही जा रहा था। तब सब देवता परेशान होकर इस दानव की शिकायत लेकर भगवान शिव के पास पहुंचते हैं और उनसे इसके निवारण का अनुरोध करते हैं। भगवान शिव ये जानते थे कि रक्तबीज का अंत माँ पार्वती ही कर सकती हैं।

इसलिए भगवान शिव माता पार्वती से अनुरोध करते हैं। तत्पश्चात मां पार्वती स्वंय शक्ति संधान करती हैं। उनके इस तेज से मां कालरात्रि की उत्पत्ति होती है। इसके बाद मां ने कालरात्रि का रूप धारण किया और रक्तबीज का अंत करने के लिए उससे युद्ध करती हैं। जब उस पर माँ प्रहार करती हैं तो उसकी रक्त बूँद से हूबहू एक और रक्तबीज तैयार हो जाता है। तभी माँ अपने चंडिका रूप को इसके रक्तपान का आदेश देती हैं, माँ के आदेशानुसार चंडिका अपना मुख काफी विशाल कर लेती हैं और रक्त की बूँद गिरने से पहले ही उसे ग्रहण कर लेती हैं और इसप्रकार देवी मां ने सब असुरों गला काटते हुए रक्तबीज का भी संहार किया। रक्तबीज का संहार करने के कारण माता का ये रूप कालरात्रि कहलाया।

मां कालरात्रि की पूजा:
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करके साफ-स्वच्छ वस्त्र पहनें। तत्पश्चात मां की मूर्ति को गंगाजल से स्नान कराएं। फिर मां को लाल रंग के वस्त्र चढ़ाये। धर्म शास्त्रों के अनुसार मां को लाल रंग अत्यंत प्रिय है। अब माँ को फूल, रोली व कुमकुम चढ़ाये। मां को भोग में मिष्ठान, पंच मेवा, पांच फल अवश्य चढ़ाये। मां कालरात्रि को शहद व गुड़ भोग अवश्य लगाएं। फिर मां कालरात्रि का ध्यान कर मां की आरती करें और माँ का आशीर्वाद जरूर लें।

माँ कालरात्रि का प्रमुख मन्त्र:

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥