गणेश चतुर्थी क्यूं मनाते हैं? – Ganesh Chaturthi Kyu Manate hain?
गणेश चतुर्थी क्यूं मनाते हैं?
पुरातनकाल से लोगो का मानना है कि भगवान गणेश जी सुख और समृद्धि के देवता हैं। वे अपने भक्तजनों की सभी बाधाओं को दूर करते हैं। इसलिए गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए लोग उनके जन्म दिवस को गणेश चतुर्थी के रूप में मानते हैं।
हिंदू धर्म में गणेश जी की पूजा करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो लोग पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ इनकी पूजा करते हैं, उन्हें खुशी, ज्ञान, धन और लंबी आयु प्राप्त होती है। और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
भगवान श्री गणेश को हम और भी अनेक नामो से जानते हैं। यहाँ देखे गणेश नामावली
गणेश चतुर्थी कथा –
एक बहुत गरीब दृष्टिहीन बुढ़िया थीं। उसके एक बेटा और बहू थे। वह बुढ़िया नियमित रूप से गणेश जी की पूजा किया करती थी। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर एकदिन गणेश जी ने साक्षात दर्शन दिए और उस बुढ़िया से बोले –
मां! आप जो चाहे सो मांग लें, “मैं आपकी हर इच्छा की पूर्ती करूंगा।”
बुढ़िया बोलती है, मुझे तो मांगना नहीं आता। कैसे और क्या मांगू?
गणेश जी बोलते हैं कि अपने बेटे-बहू से पूछकर कुछ भी मांग लें –
फिर बुढ़िया अपने बेटे से पूछने चली जाती है। और अपने बेटे को सारी बात बताकर पूछती है कि – “पुत्र मैं क्या मांगू?”
पुत्र कहता है कि मां तू धन मांग ले, उसके बाद बहू से पूछती है तो बहू नाती मांगने के लिए कहती है।
फिर बुढ़िया ने सोचा कि ये सब तो अपने-अपने मतलब की चीज़े मांगने के लिए कह रहे हैं। फिर वो अपनी पड़ोसन से पूछने चली जाती है। तो पड़ोसन कहती है, बुढ़िया, तू तो थोड़े दिन और जीएगी, क्यों तू धन मांगे और क्यों नाती मांगे। तो तू अपनी आंखों की रोशनी मांग ले। जिससे तेरी बची हुई जिंदगी आराम से कट जाएगी।
बहुत सोच विचार करने के बाद बुढ़िया गणेश जी से बोली- यदि आप प्रसन्न हैं। तो आप मुझे नौ करोड़ की माया दें, निरोगी काया दें, अमर सुहाग दें, नेत्रों को रोशनी दें, नाती/पोता दें और पूरे परिवार को सुख और समृद्धि दें और मेरे अंतिम समय में मुझे मोक्ष प्रदान करें।
यह सुनकर गणेशजी बोले – मां! आपने तो सब कुछ मांग लिया। फिर भी जो आपने मांगा है, वचन के अनुसार सब आपको मिलेगा। यह कहकर गणेशजी अंतर्ध्यान हो जाते हैं। बुढ़िया मां ने जो-जो मांगा, उनको मिल गया।
हे गणेशजी महाराज! जैसे अपने उस बूढी मां के सभी कष्टों को दूर किया, वैसे ही सभी पर अपनी असीम अनुकम्पा बनाये रखें।