विजयदशमी व दशहरा – भ्र्ष्टाचार और अत्याचार पर विजय का प्रतीक – Dussehra Festival

Posted by hindimanthan | Oct 04, 2022
hindimanthan विजयदशमी व दशहरा – भ्र्ष्टाचार और अत्याचार पर विजय का प्रतीक – Dussehra Festival

भारतवर्ष के इतिहासानुसार शारदीय नवरात्री के अंतिम दिन यानी कि नवमी के अगले दिन विजयदशमी व दशहरा का त्यौहार बड़े की हर्षोउल्लाष के साथ मनाया जाता है। विद्वानों द्वारा ये कहा जाता है कि इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने रावण का वध किया था। इसी कारण से दशहरा को बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता हैं। ऐसा कहा जाता है, कि रावण एक बहुत ही ज्ञानी, शक्तिशाली, सर्वज्ञानी था। इसी के साथ साथ वह भगवान शिव का भक्त था। रावण के अंदर अहंकार होने की वजह से उसका सर्वनाश हो गया। हमारे समाज में रावण से सम्बंधित अनेको कहानियाँ प्रचलन में हैं। रावण कुछ गुण ऐसा रखता था, जो लोग आज भी सीखना चाहते हैं। इसी वजह से रावण की कुछ जगह पर आज भी पूजा की जाती है।

दशहरा की सबसे प्रचलित कहानी (राम द्वारा रावण का वध):
वैसे हम सभी कही न कही इस कहानी से परचित तो होंगे ही लेकिन फिर भी जानते हैं की ये कहानी क्या है? जैसा कि हम सभी जानते हैं, महाराज दशरथ की तीन रानियाँ थी। जिनके चार पुत्र राम, लक्ष्मण, भारत और शत्रुधन थे।

इसके बाद भगवान राम के जन्म के साथ ही दशहरे की कहानी की शुरुआत कुछ इस तरीके से होती है। राम के जन्म के कुछ दिन के लालन पालन के बाद जब वे बड़े हो गये तब महाराज दशरथ अपने चारो पुत्रो को गुरुकुल शिक्षा लेने भेज देते हैं। जब उन लोगों की शिक्षा दीक्षा पूरी हो जाती है। तभी राम के गुरु विश्वामित्र को राजा जनक के यहाँ स्वयंवर में आने का निमंत्रण आता है। तब विश्वामित्र अपने चारों शिष्यों को वहां लेके जाते हैं।

इसी के साथ भगवान राम ने शिव के धनुष को उठा कर सीता का स्वयंबर जीत लेते हैं और उनका सीता जी क साथ विवाह हो जाता है। साथ ही साथ सीता की बहनों के साथ भगवान् राम के तीनों भाइयों का भी विवाह हो जाता है। विवाह के पश्चात् सभी पुत्र और पुत्र वधुएंजनकपुरी से अयोध्या की ओर प्रस्थान करते हैं। कुछ दिनों बाद ही माता कैकयी श्री राम जी को चौदह वर्ष का वनवास दे देती हैं। पिता के काफी रोकने के बाद भी भगवान् राम नहीं रुकते हैं क्योकि यह माता का आदेश था। वो सीता और लक्षमण के साथ वन की ओर निकल पड़ते हैं। भगवान राम महत्माओं से ज्ञान अर्जित करते हुए अपना वनवास काटते हैं।

तभी उसी वनवास के दौरान ही माता सीता का रावण द्वारा अपहरण कर लिया जाता है। माता की खोज के दौरान ही भगवान राम व उनकी सेना के द्वारा कई दैत्य दानव का वध किया गया। एक दिन हनुमान माता सीता की खोज में निकल पड़ते हैं और माता का पता कर वापस आते हैं। तब ही समुद्र को पार करने के किये रामसेतु का निर्माण किया गया। और लंका पर आक्रमण किया गया। उस समय भगवान राम और रावण के बीच 9 दिन तक युद्ध चला और युद्ध के दसवें दिन भगवान राम के द्वारा रावण का वध कर दिया गया। इस प्रकार बुराई पर अच्छाई की जीत हुई और इस दिन को पुरे भारत में दशहरे के रूप में मनाया जाने लगा।

इसी के साथ ही भगवान राम का वनवास समाप्त हो जाता है। तभी भगवान राम, माता सीता, लक्ष्मण और हनुमान के साथ अयोध्या की ओर प्रस्थान करते हैं। अयोध्यावासी भगवान के वापस आने के अवसर पर घी के दिये जलाते हैं। तब से ये दिन भारतवर्ष में दीपावली के त्यौहार के रूप में मानया जाने लगा।

भ्र्ष्टाचार और अत्याचार पर विजय का प्रतीक- दशहरा

हमारे समाज में चारों तरफ भ्रष्टाचार और अत्याचार ने अपने पैर इस तरह फैला रखे हैं। जिसे देख कर मन को हमेशा एक उजाले में जीने की चाहत और एक सवाल रहता है कि इस भ्रष्टाचार और अत्याचार रुपी अंधकार को कैसे मिटाया जाए। हम जब भ्रष्टाचार को कम करने के सारे प्रयास कर थक जाते हैं और हमे कोई आस या उम्मीद नज़र नहीं आती। तब हम अपने वेद, पुराण और संस्कृति के पन्ने पलट कर निरंतर आगे जाने की उम्मीद करते हैं।

हिंदू रीत रिवाज के अनुसार हर वर्ष रावण का दहन करना हमे यह दर्शाता है कि हिंदू समाज आज भी गलत और अत्याचार का विरोध करता है। हर वर्ष दशहरे के अवसर पर रावण का दहन, भ्रष्टाचार और अत्याचार पर न्यायवादी विजय का सूचक माना जाता है।

आजकल के समय में अत्याचार, आतंकवाद, भ्रष्टाचार और महंगाई जैसे रावण ने समाज में अपने पैर फैला रखे है। ये सभी कलयुगी रावण के प्रतीक हैं। जैसा की हम सभी ने रामायण को कभी न कभी किसी रुप में सुना, देखा और पढ़ा होगा। तो रामायण से हमे यह सीख जरूर मिलती है, कि चाहे असत्य और बुराईया कितनी भी शक्तिशाली क्यों ना हो जाएं, लेकिन सत्यता और अच्छाई का सामना कभी नहीं कर सकती।

ऐसा कहा जाता है कि दशहरे के त्यौहार दस तरह के पाप जैसे- काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी को समाज से दूर करता है। हम सभी भगवान राम और रावण की कथा तो जानते ही हैं, जिसमें भगवान राम को विष्णु का अवतार कहा गया है। भगवान राम चाहते तो अपनी असीम शक्तियों से माता सीता को बचा सकते थे, परंतु सम्पूर्ण समाज को यह बताने के लिए कि- “हमेशा बुराई पर अच्छाई की जीत होती है और चाहे कितना भी भ्रष्टाचार रूपी अंधेरा क्यूं न फैला हो एक ना एक दिन मिट ही जाता है”, उन्होंने अपनी शक्तियों का उपयोग नहीं किया।